क्या भारत में प्रेस की आज़ादी बिल्कुल ख़त्म हो जाएगी ?
[dropcap]म[/dropcap]नदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के […]
[dropcap]म[/dropcap]नदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के […]
मनदीप पुनिया की गिरफ़्तारी से आहत हूँ। हाथरस केस में सिद्दीक़ कप्पन का कुछ पता नहीं चल रहा। कानपुर के
16 जनवरी को व्हाट्सएप चैट की बातें वायरल होती हैं। किसी को पता नहीं कि चैट की तीन हज़ार पन्नों
आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला संगीन है लेकिन सिर्फ नाम भर आ जाना काफी नहीं होता है। नाम आया
सरकार द्वारा किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. पूरे
जनसामान्य में यह धारणा घर कर गयी है कि मुसलमान मूलतः और स्वभावतः अलगाववादी हैं और उनके कारण ही भारत
पिछले तीन दशकों में वैश्विक राजनैतिक परिदृश्य में व्यापक परिवर्तन आये हैं. उसके पहले के दशकों में दुनिया के विभिन्न
गुना के कलेक्टर और एस एस पी को डिसमिस कर देना चाहिए। ये बीमारी ऐसे ठीक नहीं होगी। सदियों से
प्रबंधन और प्रचार, दोनों कला है। दोनों में आंकड़ों का खेल है। इसका दिलचस्प उदाहरण तब देखने को मिला। जब
वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी मानते हैं के अब जो तस्वीर सामने आ रही है उसमें सचिन पायलट का कांग्रेस से